वरक़ वरक़ पे फ़साना बिखरने वाला था बचा लिया मुझे उस ने मैं मरने वाला था शगुफ़्ता फूल परेशाँ हुआ तो ग़म न करो कि वो तो यूँ भी हवा में बिखरने वाला था मैं उस को देख के फिर कुछ न देख पाऊँगा ये हादिसा भी मुझी पर गुज़रने वाला था पहाड़ सीना-सिपर हो गया था मेरे लिए वगर्ना मुझ में समुंदर उतरने वाला था मैं बे-क़ुसूर हूँ ये फ़ैसला हुआ वर्ना मैं अपने जुर्म का इक़रार करने वाला था उमड पड़ा था जो सैलाब-ए-हिज्र-ए-तन्हाई वो शहर-ए-दिल को भी ग़र्क़ाब करने वाला था