रौशनी ख़्वाबों की आँखों में बसाए रखना

रौशनी ख़्वाबों की आँखों में बसाए रखना
रात गहरी है बहुत शम्अ' जलाए रखना

अपनी शीशा-लक़बी का है तहफ़्फ़ुज़ लाज़िम
ख़ुद को पत्थर ज़दा लहजों से बचाए रखना

तू ये क्या जाने कि इस दौर-ए-जफ़ा-पेशा में
कितना मुश्किल है तअ'ल्लुक़ को बनाए रखना

जान से प्यारी रही है हमें अपनी दस्तार
हम ने सीखा ही नहीं सर को झुकाए रखना

सोना तप तप के बना करता है कुंदन यारो
अपने बच्चों को न सीने से लगाए रखना

दोस्तो जंग भी लाज़िम है हरीफ़ों से मगर
परचम-ए-अमन भी हाथों में उठाए रखना

तीरगी-ज़ादे तुझे चैन न लेने देंगे
इश्क़ की शम्अ' मगर दिल में जलाए रखना

वो ग़ज़ल चेहरा कि है जान-ए-गुलिस्तान-ए-ख़याल
उस को अशआर के फूलों से सजाए रखना

मेरे अज्दाद की 'शीबान' यही है ता'लीम
हो जहाँ धूप की शिद्दत वहाँ साए रखना


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