रेग-ए-सहरा की रवानी देख कर प्यास बढ़ जाती है पानी देख कर ज़िंदगी की वुसअ'तें अच्छी लगीं साहिलों की बे-करानी देख कर ख़ुद को थोड़ा सा बदलना चाहिए मौसमों की बद-गुमानी देख कर याद आता है मुझे चेहरा तिरा शाख़ में बर्ग-ए-ख़िज़ानी देख कर फिर दर-ओ-दीवार की ख़्वाहिश हुई उम्र भर की ला-मकानी देख कर