रिदाएँ चलें ख़ाक-दानों की जानिब वफ़ाएँ खुले सर दुकानों की जानिब तिरे हर सितम पर यूँही बे-इरादा नज़र उठ गई आसमानों की जानिब अजब है ये कार-ए-सुख़न शेर-गोई धकेले है रत्बुल-लिसानों की जानिब नज़र सरसराई बदन पर यूँ मेरे बढ़े साँप जैसे ख़ज़ानों की जानिब मिरा इश्क़ कहता है मुझ से कि आ जा तुझे ले चलूँ मैं उड़ानों की जानिब अभी तिफ़्ल-ए-मकतब हूँ और ना-अहल भी किधर ले चले इम्तिहानों की जानिब शब-ए-तार कच्चा घड़ा एक दरिया मैं बढ़ने लगी दास्तानों की जानिब तो मलबे से मेरे ही ता'मीर होगा गिरा के मुझे बढ़ मकानों की जानिब मेरी राह चुनना कि अब मैं रवाँ हूँ वफ़ाओं के रौशन निशानों की जानिब ये नाद-ए-अली का अजब मो'जिज़ा था सभी तीर पलटे कमानों की जानिब