तुझ से मंसूब रहूँ तेरी कही जाऊँ पिया

तुझ से मंसूब रहूँ तेरी कही जाऊँ पिया
तिरी निस्बत से लिखी और पढ़ी जाऊँ पिया

झूमती फिरती हवाओं की तरह से मैं भी
चूम कर लम्स तिरा मस्त हुई जाऊँ पिया

तिरे एहसास से लिपटी रहूँ ख़ुश्बू की तरह
रात की रानी बनूँ और खुली जाऊँ पिया

तिरी आहट का समाअ'त में कोई दर जो खुले
मैं उसी दर में दिया बन के जली जाऊँ पिया

डाल दूँ आब-ए-सितमगर में कहीं कच्चा घड़ा
दर-ए-किसरा में कहीं ज़िंदा चुनी जाऊँ पिया

रात के पिछले पहर वज्द के आलम में कहीं
मैं तिरी रूह में तहलील हुई जाऊँ पिया

फिर तिरे इश्क़ में ख़ुश्बू का बदन पहने हुए
तिरी चौखट पे अगर बन के जली जाऊँ पिया

जब कहीं कोई फ़क़ीरों में करे ज़िक्र मिरा
मैं तिरे दर के फ़क़ीरों में गिनी जाऊँ पिया

मिरे हुजरे में तिरी चाप के जब फूल खिलें
आप ही आप चराग़ों में ढली जाऊँ पिया

हो अगर दफ़्न मिरे साथ तिरा नक़्श-ए-क़दम
रक़्स करती सू-ए-मक़्तल ब-खु़शी जाऊँ पिया

बन के दरगाहों पे मैं हिज्र के मारों की दुआ
दर्द के चम्पई धागों में बंधी जाऊँ पिया

जब तिरे नक़्श-ए-क़दम पर मैं झुकी जाऊँ पिया
आसमानों में उड़ूँ उड़ती चली जाऊँ पिया

देख ले इस में सरासर तिरी बदनामी है
कि तिरे दर से उठूँ और तही जाऊँ पिया


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