वो पास है तेरे दूर नहीं तू वासिल है महजूर नहीं क्यूँ हब्ल-ए-मुरक्कब में है फँसा मुख़्तार है तू मजबूर नहीं सरगर्म-ए-शौक़-ओ-हुज़ूर नहीं दिल सर्द है तू महरूर नहीं जिस क़ल्ब में इश्क़ का नूर नहीं वो ताब-ए-जल्वा-ए-तूर नहीं हर रंग में है वो जल्वा-नुमा तू एक हिजाब में जा के छपा क्यूँ कोर सवाद हुआ है बता क्या आँखों में तिरे नूर नहीं जो इश्क़ में बर-सर-ए-दार हुआ सरदार वही सरशार हुआ सरमस्त विसाल-ए-यार हुआ किस तरह कहें मंसूर नहीं जो बातिन में मशग़ूल हुए महबूब हुए मक़्बूल हुए मजहूल हुए मारूफ़ कहाँ मशहूर जो हैं मंज़ूर नहीं क्यूँ महव-ए-सर-ए-पिंदार हुआ ऐ मुश्त-ए-ख़ाक है नक़्श-ए-फ़ना दुनिया में कहाँ है रंग-ए-बक़ा जमशेद नहीं मग़्फ़ूर नहीं मस्तूर जो था मंज़ूर हुआ वो जल्वा-ए-रंग-ए-ज़ुहूर हुआ जो हिजाब था रुख़ से दूर हुआ मुश्ताक़-लक़ा महजूर नहीं जो आप हुआ बेनाम-ओ-निशाँ उस को है मिला वो जान-ए-जहाँ मेराज-ए-विसाल है उस को कहाँ जो इश्क़ में चकना-चूर नहीं मैं तेरा फ़िदा-ए-सरापा हूँ मैं तालिब-ए-वस्ल-ए-मुअर्रा हूँ मुश्ताक़-ओ-शैदा तेरा हूँ मैं तालिब-ए-हूर-ओ-क़ुसूर नहीं मख़मूर-ए-जाम-ए-बाक़ी है शैदा-ए-नवा-ए-इराक़ी है सरशार-ए-मोहब्बत 'साक़ी' है सर-मस्त है ये मस्तूर नहीं