रोज़ आती है इक सदा मुझ में कौन रहता है मैं सिवा मुझ में क्यों ये हंगामा है बपा मुझ में क्या कोई ख़्वाब मर गया मुझ में क्यों उसे ढूँडूँ आसमाँ के पार है यक़ीं रह रहा ख़ुदा मुझ में साँस लेता हूँ दर्द होता है क्या कोई हादिसा हुआ मुझ में कर्ब की आग में जला है बदन ज़िंदगी आ मुझे बचा मुझ में माँ ने रौशन इसे किया 'तारिक़' कैसे बुझ पाएगा दिया मुझ में