रूप का रसिया सुख का खोजी दिल है वो बालक नादान दर दर घूमे बना भिकारी माँगे ख़ुशियों का दान जलती बुझती शम्ओं' से पूछो रात के सीने का दर्द उड़ते पखेरू बतलाएँगे सूरज की हर मुस्कान कौन चखे ये पान का बीड़ा कौन चढ़ाए चिल्ला नस नस टूट टूट रह जाए जीवन वो कड़ी कमान उस का जिस्म है जैसे हवा में मचलते धान की बाली उस की शोख़ कटीली नज़रें जैसे अर्जुन के बान कभी कभी तो फूल की ख़ुशबू भी कर देती है ज़ुकाम कभी कभी तो शराब भी होती है जीवन का वरदान मोल-तोल कब करते हैं भला दिल सी शय के गाहक महँगी बिके या सस्ती उट्ठे हैं दोनों एक समान हम से भी कुछ कह लो सुन लो ऐ जाने वाली रातो हम भी तो हैं इस दुनिया में दो घड़ियों के मेहमान