रूह की बात सुने जिस्म के तेवर देखे इल्तिजा है कि वो इस आग में जल कर देखे तुम वो दरिया कि चढ़े भी तो घड़ी भर के लिए मैं वो क़तरा हूँ जो गिर के भी समुंदर देखे चुभता माहौल घुटी रूह गुरेज़ाँ लम्हे दिल की हसरत है कभी उन से निकल कर देखे एक नक़्शे पे ज़माना रहा हंगाम-ए-विसाल शीशा-ए-जिस्म में सौ तरह के मंज़र देखे कैसे कर ले वो यक़ीं तुझ पे फ़रेब-ए-ग़म-ए-ज़ात तेरी राहों में जो तश्कीक के पत्थर देखे बात हो सिर्फ़ हक़ीक़त की तो सह ले लेकिन अपने ख़्वाबों को बिखरते कोई क्यूँकर देखे हम से मत पूछिए क्या नफ़्स पे गुज़री 'उम्मीद' एक इक साँस से लड़ते हुए लश्कर देखे