रूह मिरी जिस ख़ाने में है उस ख़ाने का क्या होगा मैं तो शहर चला जाऊँगा वीराने का क्या होगा तेरे सर को दुनिया वालों के काँधे मिल जाएँगे मेरे बारे में भी सोच मिरे शाने का क्या होगा दुनिया लिखने वाले ने बस दुनिया लिख के छोड़ दिया अब दुनिया वाले सोचें इस अफ़्साने का क्या होगा मौत हमें वापस ले जाएगी ये बस ख़ुश-फ़हमी है हम दुनिया में आ तो गए हैं घर जाने का क्या होगा एक परिंदा ऐसा भी है जो ये सोचा करता है जाल के अंदर छूट गया जो उस दाने का क्या होगा मैं तो ठीक हूँ लेकिन मेरे अंदर जो ये 'रिज़वी' है अक्सर सोचा करता हूँ इस दीवाने का क्या होगा और ज़ियादा ख़ुद पर वहशत तारी मत कीजे 'शहबाज़' दुनिया जो तय करती है उस पैमाने का क्या होगा