रुख़-ए-हयात पे रंग-ए-मलाल अब भी है किसी को भूलना कार-ए-मुहाल अब भी है न जाने कब से है सहराओं का सफ़र दरपेश मगर ये दिल है कि दरिया-मिसाल अब भी है निभा रहा है तअल्लुक़ रफ़ीक़-ए-देरीना ग़म-ए-नफ़स को हमारा ख़याल अब भी है रिदा-ए-ज़ख़्म से कल भी दमक रहा था बदन निगार-खाना-हस्ती निहाल अब भी है दराज़-दस्ती-ए-शाम-ए-फ़िराक़ से कह दो कि मेरी रूह में कैफ़-ए-विसाल अब भी है मिला तो है वो ब-ज़ाहिर तपाक से लेकिन निगाह कहती है शीशे में बाल अब भी है ज़बाँ-बुरीदों के तेवर बता रहे हैं 'राज़' निगाह-ओ-लब पे वो हर्फ़-ए-सवाल अब भी है