सहन-ए-गुल-रंग से आँखों की रिफ़ाक़त है अभी नींद टूटी है मगर ख़्वाब सलामत है अभी बे-सबब तो नहीं चेहरे पे थकन के आसार दोष-ए-एहसास पे इक बार-ए-अमानत है अभी दर्द-ओ-ग़म नग़्मा-सरा हैं मिरी शिरयानों में एक इक साँस मिरी महव-ए-इबादत है अभी रंग क्या रौशनी तस्वीर हुई जाती है लम्हा-ए-हिज्र-ए-मुसलसल की इनायत है अभी कौन सा मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार कहाँ का हम-ज़ाद ख़ुद मिरी ज़ात पस-ए-गर्द-ए-मसाफ़त है अभी बे-ख़ुदी क्यों न करे रक़्स मिरे पैकर में ज़ख़्म रौशन हैं मिरे दर्द में लज़्ज़त है अभी जाने किस मोड़ पे दामान-ए-हवस फैला दे 'राज़' ये क़ल्ब जो माइल ब-क़नाअ'त है अभी