रुस्वा हो जो दुनिया में वो मय-ख़्वार हमीं हैं सब आबिद-ओ-ज़ाहिद हैं गुनहगार हमीं हैं अब ख़ूबी-ए-क़िस्मत न कहें इस को कहें क्या तक़्सीर किसी की हो ख़तावार हमीं हैं लग़्ज़िश पे हमारी कभी तन्क़ीद न करना ऐ बे-ख़बरो साहिब-ए-किरदार हमीं हैं उन की निगह-ए-नाज़ पे कोई नहीं इल्ज़ाम सच ये है मोहब्बत के ख़ता-कार हमीं हैं इक फूल भी दामन को मयस्सर नहीं आता माना कि हर इक फूल के हक़दार हमीं हैं ना-क़द्री-ए-अर्बाब-ए-हुनर देख के 'शाइर' जो फ़न से पशेमाँ हो वो फ़न-कार हमीं हैं