रुत बरखा की ढलने दे दिल से हाए निकलने दे पत्ता पत्ता फूल खिला डाली डाली फलने दे सूरज भी ढल जाएगा धूप का रंग बदलने दे पत्थर की आईने से चलती है तो चलने दे नोक-ए-क़लम को काग़ज़ पर दिल का ज़हर उगलने दे कब तक ठोकर खाते जाएँ ज़ालिम वक़्त सँभलने दे छेड़ न कर हम मस्तों से बाबा रस्ता चलने दे रौशनियों का मारा 'मौज' कैसे दीपक जलने दे