रूठना तेरा सर-ए-शाम बुरा लगता है शब को फिर चाँद लब-ए-बाम बुरा लगता है नाम ले ले के मैं जीता हूँ जहाँ में जिस का जाने क्यों उस को मिरा नाम बुरा लगता है ग़म भी मिल जाए अगर उन का तो क़िस्मत बन जाए इश्क़ में किस को ये इनआ'म बुरा लगता है आदमी औरों को बदनाम करे जी भर के अपना जब नाम हो बदनाम बुरा लगता है हो सफ़र ऐसा कि महबूब हो मंज़िल जिस की इश्क़ वालों को तब आराम बुरा लगता है जब से देखी हैं तिरी मस्त शराबी आँखें नश्शा-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम बुरा लगता है हो बुरे काम से जो दौलत-ओ-शोहरत हासिल फिर 'मलिक' किस को बुरा काम बुरा लगता है