सब कुछ तो ज़िंदगी की मता-ए-सफ़र में है जब तुम नज़र में हो तो ज़माना नज़र में है यूँ भी तो सोच नाज़-कश-ए-हुस्न-ए-दोस्ताँ तेरा भी कुछ मक़ाम किसी की नज़र में है पढ़ लेते हैं वो सब की नज़र से दिलों का हाल अंदर से कौन क्या है सब उन की नज़र में है क्यूँ हो रहा है तज्ज़िया-ए-जौर-ए-ना-रवा तस्वीर का ये रुख़ भी किसी की नज़र में है यारो शिकार-ए-वक़्त हूँ या आसमाँ-शिकार जो कुछ भी हूँ सब अहल-ए-नज़र की नज़र में है अब क्या शिकायत-ए-रविश-ए-दोस्ताँ करूँ 'ग़ौसी' मिरी कमी भी तो मेरी नज़र में है