सब मदारी हैं तमाशा भी है कोई कोई अब उन्हें देखने वाला भी है कोई कोई मेरी ख़ामोशी को तन्हाई समझने वालो महफ़िल-ए-दिल में तो आता भी है कोई कोई सुर्ख़ मिट्टी में गिरे आँसू बने हैं मोती ख़ाक से ढूँढ के लाता भी है कोई कोई हँसते हँसते हुए आँसू भी निकल आते हैं रोते रोते हुए हँसता भी है कोई कोई छोड़ जाता है तो जाए ये हुजूम-ए-दुनिया मजमा-ए-ग़ैर से आया भी है कोई कोई 'मीर' तो मीर है साहब तो नहीं है साहब 'मीर' के दौर में सौदा भी है कोई कोई तेरी दुनिया में मिरा ज़िक्र रहेगा 'मंज़र' सूरत-ए-शेर में देखा भी है कोई कोई