सब मसरूफ़ हैं अपने अपने होने में ख़ूब मज़ा आता है उन पे रोने में कुछ अंधों का रब्त बनेगा सूरज से हैरत शामिल होगी जादू टोने में दुनिया को इक कोना जान रहे हैं हम पड़े हुए हैं दुनिया के इक कोने में बंजर तुझ में फ़स्ल उगा सकते हैं हम अपनी मिट्टी ख़र्च करेंगे बोने में हम आदम की ज़ात में जगमग चमके थे हम को पूरा अह्द लगेगा सोने में