सब सहीफ़ों को ताक़ पर रख दो जी नहीं मानता मगर रख दो अश्क जी खोल कर बहा लूँ मैं हाथ आँखों पे तुम अगर रख दो जिस में माहौल ही न हो घर का एक कोने में ऐसा घर रख दो तुम को रोने की जब जगह न मिले मेरे शाने पे अपना सर रख दो सोच इक बोझ है मिरे दिल पर इस को ले कर इधर उधर रख दो हाल ही आ के पूछ लो मेरा एक मरहम सा घाव पर रख दो कश्तियाँ आएँगी इधर कुछ और मेरी नाव में सब भँवर रख दो तजरबे अपनी ज़ीस्त के 'राहत' एक गठरी में बाँध कर रख दो