सब से तुम अच्छे हो तुम से मिरी क़िस्मत अच्छी यही कम-बख़्त दिखा देती है सूरत अच्छी हुस्न-ए-मा'शूक़ से भी हुस्न-ए-सुख़न है कमयाब एक होती है हज़ारों में तबीअ'त अच्छी मेरी तस्वीर भी देखी तो कहा शर्मा कर ये बुरा शख़्स है इस की नहीं निय्यत अच्छी किस सफ़ाई से किया वस्ल का तू ने इंकार इस महल पर तो ज़बाँ में तिरी लुक्नत अच्छी जो हो आग़ाज़ में बेहतर वो ख़ुशी है बद-तर जिस का अंजाम हो अच्छा वो मुसीबत अच्छी तुम बताओ तो सही मेहर-ओ-मोहब्बत के गवाह ऐसे दा'वे में तो झूटी ही शहादत अच्छी ज़ोर-ओ-ज़र से भी कहीं 'दाग़' हसीं मिलते हैं अपने नज़दीक तो है सब से इताअ'त अच्छी