सच है तेरी ही आरज़ू मुझ को कहीं जीने दे यूँही तू मुझ को बंदा-ए-नौ-ख़रीद हूँ हर दम रखिए आँखों के रू-ब-रू मुझ को कल तक उस की तलाश थी लेकिन आज है अपनी जुस्तुजू मुझ को पहले वो था कि तुम न थे आगाह अब वो हूँ सुन लो कू-ब-कू मुझ को वाँ शिकायत पे वो हिकायत है कि नहीं जा-ए-गुफ़्तुगू मुझ को ऐ हयात-ए-दो-रोज़ा ले आई किन गिरफ़्तारियों में तू मुझ को 'दाग़' यकसू हो ख़ुश नहीं आती ना-उमीदाना आरज़ू मुझ को