सब यक़ीं बेच कर सब गुमाँ बेच कर मैं तवंगर हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ बेच कर झड़ गए मेरी शाख़ों से बर्ग-ओ-समर फिर बहारें ख़रीदीं ख़िज़ाँ बेच कर इक नया आशियाना बनाऊँगा मैं बर-लब-ए-मैकदा इक मकाँ बेच कर सब बिकेगा यहाँ बेकसी के सिवा मैं अभी आ रहा हूँ ज़बाँ बेच कर अपने बच्चों की रोज़ी कमाता रहा वो अदालत में अपना बयाँ बेच कर मुझ कसाफ़त-ज़दा ने गुलिस्तान में इक नया घर लिया तितलियाँ बेच कर मुफ़्लिसी रूह की अब भी पहले सी है क्या कमाया दिल-ए-नग़्मा-ख़्वाँ बेच कर 'आब्दी' चुप रहा मस्लहत के सबब कौन ख़ुश है यहाँ आस्ताँ बेच कर