सबा फूलों से करती है ख़िताब आहिस्ता आहिस्ता उसे मिलती है ख़ुशबू-ए-जवाब आहिस्ता आहिस्ता ख़ुदारा आईये तकमील-ए-ख़ल्वत होने वाली है धड़कता है दिल-ए-ख़ाना-ख़राब आहिस्ता आहिस्ता भँवर का डर है अब कोई न साहिल की तमन्ना है सफ़ीना जा रहा है ज़ेर-ए-आब आहिस्ता आहिस्ता बहार आई है फिर ग़ुंचा-ब-ग़ुंचा मेरे गुलशन में ख़िज़ाँ को मिल गया आख़िर जवाब आहिस्ता आहिस्ता 'रफ़ीक़' आँखें नहीं खुलती हैं मेरी इन शुआ'ओं में उजालों से कहो तोड़ें हिजाब आहिस्ता आहिस्ता