'सबा' ये उन से कहो कि मुझ पे नवाज़िशें बे-हिसाब लिखना मिरे मुक़द्दर में नींद लिखना न रात लिखना न ख़्वाब लिखना वो रौशनाई कहाँ से लाऊँ मैं ऐसे कातिब कहाँ से ढूँडूँ बहुत कठिन है गुलाब चेहरों पे दास्तान-ए-अज़ाब लिखना मैं धूप सहरा में डूब जाने की आरज़ू में तड़प रही हूँ मिरे नसीबों में प्यास लिखना क़दम क़दम पे सराब लिखना तुझे ख़ुदाई का वास्ता है मिरी दुआ की भी लाज रखना मैं तुझ से उम्र-ए-दराज़ माँगूँ तू मेरे हक़ में हबाब लिखना लो तेरी चौखट पे ज़िंदगी का मैं फ़ैसला अब के ले रही हूँ तू मेरे दस्त-ए-सवाल पर अब कोई न कोई जवाब लिखना यहाँ ज़मीनें खिसक चुकी हैं हर एक घर अब उजड़ चुका है मिरा मकाँ है अभी सलामत मुझे भी ख़ाना-ख़राब लिखना