वहाँ तो रोज़ सितारा नया चमकता है यहाँ बस एक ही जुगनू है जो सिसकता है उसे तो वक़्त ने ख़ामोशियाँ ही बख़्शी हैं जो अपनी राह बदलता है और भटकता है वो एक झूट था जो रौशनी में आ पहुँचा ये एक सच है अंधेरों में जो भटकता है तू किस ख़याल में किस सोच में है फ़िक्र न कर कि मेरा ज़ख़्म तिरा ज़ुल्म छुप तो सकता है लगा लिए हैं जो मैं ने भी मौसमी चेहरे तू मेरे घर में भी सूरज सा इक चमकता है 'नियाज़ी' आज उस आतिश-बदन की याद आई कि जिस के नाम से शो'ला सा इक लपकता है