सच बात तो ये है जो मज़ा प्यार में आया उस से कहीं बढ़ कर हमें इज़हार में आया अब कैसे उसे क़ौम का आईना कहूँ मैं कब दर्द मिरा सुर्ख़ी-ए-अख़बार में आया बेगानों तुम्हें मिल नहीं सकता वो जहाँ में हम को जो मज़ा यार के दीदार में आया सड़कों पे मिरे ख़ून को बहने से बचाने मैं ख़ुद ही कटा सर लिए दरबार में आया तख़्लीक़-ए-ग़ज़ल तेरी मोहब्बत का असर है सोचा भी न था मैं ने जो इज़हार में आया 'हादी' कहीं तूफ़ान का वो रूप न धारे जो दर्द मिरे क़ल्ब से अशआ'र में आया