सच है किसी की शान ये ऐ नाज़नीं नहीं तू हर जगह है जल्वा-गर और फिर कहीं नहीं मैं ने वुफ़ूर-ए-शौक़ में शायद सुना न हो या शायद आप ही ने न की हो नहीं नहीं दस्त-ए-जुनूँ से क़त्अ हुआ पैरहन मिरा दामन नहीं है जेब नहीं आस्तीं नहीं मैं तुम से क्या बताऊँ कि इस वक़्त हूँ कहाँ जब तुम हो पेश-ए-चश्म तो फिर मैं कहीं नहीं जब से गुनाह छोड़ दिए सब खिसक गए अब कोई मेरा दोस्त नहीं हम-नशीं नहीं 'अकबर' हमारे 'अह्द का अल्लाह रे इंक़िलाब गोया वो आसमान नहीं वो ज़मीं नहीं