शिकवा-ए-बेदाद से मुझ को तो डरना चाहिए दिल में लेकिन आप को इंसाफ़ करना चाहिए हो नहीं सकता कभी हमवार दुनिया का नशेब इस गढ़े को अपनी ही मिट्टी से भरना चाहिए जम' सामान-ए-ख़ुद-आराई है लेकिन ऐ 'अज़ीज़ जिस की सूरत ख़ूब हो उस को सँवरना चाहिए 'आशिक़ी में ख़ंदा-रूई सालिकों को है मुहाल है यही मंज़िल कि चेहरे को उतरना चाहिए हर 'अमल तेरा है 'अकबर' ताबे'-ए-‘अज़्म-ए-हरीफ़ जब ये मौक़ा' हो तो भाई कुछ न करना चाहिए