साक़िया अब्र है दे जाम शिताब एक पर एक आज महफ़िल में गिरे मस्त-ए-शराब एक पर एक गुल-ए-बाज़ी है हसीनों में मिरा अफ़्साना फेंक देता है मोहब्बत की किताब एक पर एक जोश पर है जो तिरा हुस्न तो ऐ पर्दा-नशीं रोज़ करता है ग़ज़ब बंद-ए-नक़ाब एक पर एक तोड़ इस तरह से ऐ नाला-ए-दिल सातों फ़लक कि गिरें टूट के ये ख़ाना-ख़राब एक पर एक लब-ए-जू सैर को आया है जो वो बहर-ए-जमाल टूटा पड़ता है तमाशे को हबाब एक पर एक याद आती है उन्हें दम-ब-दम इक बात नई रोज़ आता है मिरे ख़त का जवाब एक पर एक जब कभी 'दाग़' किया हम ने सवाल-ए-बोसा सैकड़ों उस ने दिए सख़्त जवाब एक पर एक