सदा का सौत का इक़रार होना बाक़ी है अभी तो दर्द का इज़हार होना बाक़ी है लबों के लम्स से वाज़ेह है दिल की सरगोशी कहूँ ये कैसे कि बेदार होना बाक़ी है खड़े हो शोर-ए-तलातुम से डर के साहिल पर अभी तो बहर के उस पार होना बाक़ी है अभी तो फैली है कुछ मल्गजी सी धूप यहाँ किरन में और भी कुछ धार होना बाक़ी है अभी तो ज़ख़्मों की रूदाद सुन रहे हैं हम अभी हमारा शरर-बार होना बाक़ी है कहीं तो नीची कहीं ऊँची हो गई है अना ये मस्लहत को गिराँ-बार होना बाक़ी है चुभन के लफ़्ज़ का मफ़्हूम ही बदल दो 'असर' ग़मों का दिल पे तो अम्बार होना बाक़ी है