सफ़र हमारा कि बाहम बहुत निढाल रहा बिछड़ते वक़्त मगर दिल में क्यों सवाल रहा तिरे मलाल में ज़म थे निगाह साँस बदन मिरा मलाल था ख़ालिस कि बस मलाल रहा बिछड़ने वाला कम-अज़-कम पलट के देखा तो बिछड़ने वाले का कुछ तो उसे ख़याल रहा शब-ए-फ़िराक़ हो या हो विसाल की सा'अत तिरा ख़याल हर इक रंग में कमाल रहा मिरे बदन में बस इक रूह-भर जगह है दोस्त उसे है आना सो मुझ को वो अब निकाल रहा