सफ़र में ऐसे कई मरहले भी आते हैं हर एक मोड़ पे कुछ लोग छूट जाते हैं ये जान कर भी कि पत्थर हर एक हाथ में है जियाले लोग हैं शीशों के घर बनाते हैं जो रहने वाले हैं लोग उन को घर नहीं देते जो रहने वाला नहीं उस के घर बनाते हैं जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं कभी जो बात कही थी तिरे तअ'ल्लुक़ से अब उस के भी कई मतलब निकाले जाते हैं