सहन रौशन न इक मकाँ रौशन चेहरा चेहरा उदासियाँ रौशन ज़ेहन-दर-ज़ेहन वस्ल-ए-बे-ज़ारी जिस्म-दर-जिस्म सर्दियाँ रौशन गाँव-दर-गाँव तीरगी के पड़ाव शहर-दर-शहर बिजलियाँ रौशन भर सफ़र धूप कुफ़्र करती हुई ना तरफ़ सर पे साएबाँ रौशन सोचते रह गए नज़र वाले कर गए यार जिस्म-ओ-जाँ रौशन कितने आलम हयात से छूटे तब हुआ एक ख़ाक-दाँ रौशन नूर ने घर किया निगाहों में हो गए सात आसमाँ रौशन