शाइ'री में नई जिहत रक्खी मैं ने अपनी अलग लुग़त रक्खी कोई ता'मीर किस तरह होती सारी बुनियाद थी ग़लत रक्खी मुझ को बख़्शा नहीं कमाल कोई उस ने मुझ में यही सिफ़त रक्खी माल ख़ैरात कर दिया सारा सिर्फ़ कश्कोल में बचत रक्खी उस ने चाहा ग़ुलाम बन जाऊँ सामने मेरे सल्तनत रक्खी पहले पहली परत बिछाई और और फिर दूसरी परत रक्खी थक गया मैं तो झाँक कर देखा मुझ में चलने की थी सकत रक्खी