साहिब-ए-नज़र हैं लोग और बे-बसर हैं लोग मोहतरम न क्यों कहिए आख़िर अहल-ए-ज़र हैं लोग ज़िंदगी न ज़िंदा-दिली क्या शजर हजर हैं लोग कब उठे हैं फ़ित्ने ख़ुद आप फ़ित्ना-गर हैं लोग तुम भी ख़ूब हो लेकिन तुम से ख़ूब-तर हैं लोग अब कहाँ वो ख़ाना-ब-दोश आसमाँ ब-सर हैं लोग घर हैं बे-चराग़ तो क्या शम्स हैं क़मर हैं लोग ख़ैर की दुआ कीजे ख़ैर से ब-शर हैं लोग