वाहिमा क्यों मुझे ये ख़ास हुआ कोई मुझ में है बद-हवास हुआ मैं उसे याद ही नहीं आती बस ये सोचा तो दिल उदास हुआ मैं ने हर दम वफ़ा निभाई तो बेवफ़ा क्यों मिरा लिबास हुआ वो ग़मों की हुई फ़रावानी दर्द भी वाक़िफ़-ए-हिरास हुआ न ठहरना था वो नहीं ठहरा दिल बहुत हर्फ़-ए-इल्तिमास हुआ गरचे नज़रों से भी रहा ओझल पर 'दुआ' मेरे आस-पास हुआ