सजाएँ महफ़िल-ए-याराँ न शग़्ल-ए-जाम करें तो और कैसे तिरे ग़म का एहतिराम करें किसे बुलाएँ चनारों में आधी रात गए अगर करें तो किसे सुब्ह का सलाम करें बसाएँ क़ाफ़-ए-तसव्वुर में इक परी-वश को कुछ आज इशरत-ए-हिज्राँ का एहतिमाम करें जुलूस-ए-शोला-रुख़ाँ किस तरफ़ को गुज़रेगा कोई बताए कहाँ अहल-ए-दिल क़याम करें चलो कि ख़ेमा-ए-महबूब कोई दूर नहीं उठो कि आज की शब में जुनूँ का नाम करें हमारे जाम में मय भी है ख़ून-ए-दिल भी है ये देखना है ख़ुदा वाले क्या हराम करें