सख़्त-जानी का सही अफ़्साना है शाहिद-ए-तेग़-ए-ज़बाँ दन्दाना है मक़्तल-ए-आलम मिरा वीराना है दीदा-ए-बिस्मिल चराग़-ए-ख़ाना है शम-ए-रौशन आरिज़-ए-जानाना है ख़ाल-ए-मुश्कीं शम्अ' का परवाना है दिल में अक्स-ए-चेहरा-ए-जानाना है आइने का आइने में ख़ाना है कौन दुनिया में रहे दीवाना है एक उजड़ा सा मुसाफ़िर ख़ाना है तेरी महफ़िल काबा है ऐ शम्अ'-रू ताएर-ए-क़िबला-नुमा परवाना है आँखें मलता हूँ तुम्हारी ज़ुल्फ़ से पंजा-ए-मिज़्गाँ ब-रंग-ए-शाना है शम्अ'-रूयों की तजल्ली देखिए किर्मक-ए-शब-ताब हर परवाना है आब-ए-ख़ंजर क्या शराब-ए-नाब थी रक़्स-ए-बिस्मिल लग़्ज़िश-ए-मस्ताना है ख़ल्क़-ए-आलम को पहुँचता है गज़ंद नफ़्स-ए-अम्मारा सग-ए-दीवाना है बादा-नोशान-ए-अज़ल हैं सेर-चश्म जिस तरफ़ देखें उधर मय-ख़ाना है अब्र आता है तो बिकती है शराब नक़्द-ए-रहमत हासिल-ए-मय-ख़ाना है एक तेरे नाम का करता हूँ ज़िक्र मुझ को विर्द-ए-सुब्हा-ए-यक-दाना है खाते हैं अंगूर पीते हैं शराब बस यही मस्तों का आब-ओ-दाना है किस तरफ़ करते हो सज्दे ज़ाहिदो काबा एक उजड़ा हुआ बुत-ख़ाना है चश्म-ए-मूसा के हों पर्दे कान में लन-तरानी का बयान अफ़्साना है ठंडे ठंडे सोते हैं ज़ेर-ए-ज़मीं गोर अपने वास्ते तह-ख़ाना है क्या बने सौदा तिरा ऐ ख़ुद-फ़रोश मोल जो हम ने कहा बैआ'ना है देखते हैं बुत मिरी बेताबियाँ सर बहकना सज्दा-ए-शुकराना है क्या तिरा आईना-ए-रू साफ़ है नक़्द-ए-जाँ लेता यहाँ जुर्माना है गर्म नाले सर्द हैं ऐ हम-सफ़ीर ज़ाहिरन कुंज-ए-क़फ़स ख़स-ख़ाना है की मय-ए-मुफ़्त आज क़ाज़ी ने हलाल फ़ी-सबीलिल्लाह हर मय-ख़ाना है इख़्तिलात अपने अनासिर में नहीं जो है मेरे जिस्म में बेगाना है क्या समुंदर को दिखाएँ गर्मियाँ दोज़ख़ अपना एक आतिश-ख़ाना है हो गए मिस्ल-ए-सुलैमाँ अहल-ए-इश्क़ ऐ परी क्या हिम्मत-ए-मर्दाना है दिल है आईना तो अस्कंदर हूँ मैं हुस्न की दौलत मिरा नज़राना है अर्श तक गर्दूं से देखा ऐ सनम सात ज़ीने का ये बाला-ख़ाना है खेल जाते हैं हज़ारों जान पर इश्क़-बाज़ी बाज़ी-ए-तिफ़्लाना है जान देता हूँ मगर आती नहीं मौत को भी नाज़-ए-मअशूक़ाना है पाते हैं नक़द-ए-ज़र-ए-गुल बे-हिसाब बाग़-ए-आलम उस का दौलत-ख़ाना है आज है महव-ए-शना वो शम्अ'-रू हर पर-ए-माही पर-ए-परवाना है दिल कहाँ ये नफ़्स-ए-अम्मारा कहाँ आइना पेश सग-ए-दीवाना है इफ़्फ़त-ए-मश्शाता किस से हो बयाँ पंजा-ए-मरयम तुम्हारा शाना है मय-कदे के काम दिल से लीजिए ख़ुम का ख़ुम पैमाना का पैमाना है लखनऊ का मुझ को सौदा है 'मुनीर' दिल हुसैनाबाद पर दीवाना है