साक़ी-गरी का फ़र्ज़ अदा कर दिया गया पानी का घूँट ज़हर मिला कर दिया गया बस तजरबों की नज़्र हुए अपने सारे ख़्वाब क्या हम ने करना चाहा था क्या कर दिया गया वाबस्तगी किसी की तो इस ग़म-कदे से है वर्ना यहाँ पे कौन जला कर दिया गया अब क़ैद ख़त्म होने की वो क्या ख़ुशी मनाए पर कैंच कर के जिस को रिहा कर दिया गया ख़ू-ए-सितम तुम्हें दी हमें खू-ए-ज़ब्त-ए-ग़म सब को ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ अता कर दिया गया इक ज़िक्र ऐसा छेड़ा किसी ग़म-गुसार ने भरने को था जो ज़ख़्म हरा कर दिया गया