सलीक़े से पिया करते हैं पैमाने मोहब्बत के बहुत इश्क़--आश्ना होते हैं दीवाने मोहब्बत के तसव्वुर छेड़ता है जब फ़ुसून-ए-हुस्न का बरबत सरापा सोज़ बन जाते हैं परवाने मोहब्बत के निगाह-ए-मस्त उठती है तो अब्र-ए-मय बरसता है फ़ज़ा में जगमगा उठते हैं मयख़ाने मोहब्बत के नहीं मिटते कभी भी इन्क़िलाबात-ए-ज़माना से नुक़ूश-ए-कल-हजर होते हैं अफ़्साने मोहब्बत के जिन्हें ये धुन कि शम-ए-हुस्न पर क़ुर्बान हस्ती हो यक़ीं कर लो कि हम ही हैं वो परवाने मोहब्बत के चमन वालो ये दश्त-ए-नज्द से आवाज़ आती है न उजड़ेंगे जो बस जाएँगे वीराने मोहब्बत के