समाअ'तें उसे अपनाएँ ये तो तय भी नहीं मिरे कलाम में तुम जैसी कोई लय भी नहीं तू आब है जिसे मिल जाए उस को जीवन दे मैं एक संग हूँ मेरा कहीं विलय भी नहीं किसी मक़ाम पे जिबरील भी ठिठकते हैं और एक हम हैं कि हम को किसी का भय भी नहीं अज़ल से तेग़-ब-कफ़ लड़ रही हैं दो सम्तें इक ऐसी जंग के जिस में कोई विजय भी नहीं किसी की राह में बैठे हुए ये सोचते हैं हमारे पास किसी के लिए समय भी नहीं मैं उस को खोने की हिम्मत नहीं जुटा सकता वो एक शय मिरी तक़दीर में जो है भी नहीं