तेरा शेवा है इधर देख मसीहाई कर ज़ख़्म फिर खुलने लगे ठीक से तुरपाई कर मैं तुझे देख नहीं सकता ये बात और मगर इक झलक ही सही ज़ाएअ' मिरी बीनाई कर तेरी निस्बत से वो अब मेरी क़यादत में है मैं ने मजनूँ से कहा भी था कि अगुवाई कर मैं न कहता था निगाहें न मिला दिल न गँवा अब जो हो पाए तो नुक़सान की भरपाई कर क़ैसियत संग की बरसात में नहलाती है ज़ेब है तुझ को मिरी जान तू लैलाई कर और मैं अक़्ल के ताबे' नहीं रह सकता अब आ मिरे सर में समा जा मुझे सौदाई कर यूसुफ़-ए-मिस्र का ख़ालिक़ भी मिलेगा तुझ को ख़ुद में पैदा ज़रा अंदाज़-ए-ज़ुलेख़ाई कर तू भी हँस दे कभी मज्ज़ूब के पहनावे पर तू भी ख़ुद को किसी दिन मेरा तमाशाई कर तेरी फ़ुर्क़त मिरी शादाबी को खा जाएगी मुझ को हरगिज़ न असीर-ए-ग़म-तन्हाई कर