सनम-कदा में हरम में शराब-ख़ाने में हमें मिले तिरे जल्वे हर आस्ताने में ये जज़्ब-ए-ख़ास न देखा कहीं ज़माने में गिरी तो डूब गई बर्क़ आशियाने में जो आफ़्ताब से मंसूब है ज़माने में उसी को कहते हैं साग़र शराब-ख़ाने में मैं सज्दा-रेज़ रहा बे-ख़ुदी में हर दर पर जबीन-ए-शौक़ रही उन के आस्ताने में चमन की रूह मिरी ज़िंदगी का हासिल थे वो चार तिनके जो थे मेरे आशियाने में ये डेढ़ ईंट की मस्जिद नहीं है ऐ वाइज़ हयात ख़िज़्र से ले मै-कदा बनाने में जिला मिली है मिरे दिल को उन के जल्वों से वो ख़ुद शरीक थे ये आइना बनाने में नहीं है हक़ उसे उन के नक़ाब उलटने का बहक गया हो जो पी कर शराब-ख़ाने में तड़प के बर्क़ गिरी उस पे इस तरह गोया बहुत बड़ी कोई दौलत है आशियाने में मिरा ख़याल मिरा सज्दा मेरा ज़ौक़-ए-तलब जो आ गया वो रहा तेरे आस्ताने में नफ़स नफ़स में वही जल्वा-गर नज़र आए 'वकील' ढूँढ रहा था जिन्हें ज़माने में