संग पर फूल खिलाने का हुनर आता है मुझ को एहसास जगाने का हुनर आता है आइने मुझ से ख़फ़ा रहते हैं क्यूँकि मुझ को शे'र में शक्ल दिखाने का हुनर आता है कौन है कोई नहीं रब के अलावा जिस को आग को फूल बनाने का हुनर आता है आँख को ख़्वाब दिखाएँ सभी लेकिन मुझ को ख़्वाब को ख़्वाब दिखाने का हुनर आता है इस तवस्सुत से भी परियाँ मुझे पहचानती हैं चाँद पर रंग जमाने का हुनर आता है आँख के पार मिरे देख नहीं सकता कोई दर्द-ए-दिल मुझ को छुपाने का हुनर आता है ये हुनर मुझ को विरासत में मिला पुरखों से दश्त में ख़ाक उड़ाने का हुनर आता है मैं समुंदर नहीं इक अब्र हूँ 'शादाब' जिसे दश्त की प्यास बुझाने का हुनर आता है