तिरा हुस्न कोई तिलिस्म है तो क़ुबूल दिल का पयाम कर जिसे चाहे अपना अज़ीज़ रख जिसे चाहे अपना ग़ुलाम कर मिरे दिल-कुशा मिरे दिल-नशीं मिरे हम-नवा मिरे हम-नशीं मिरे दिल में पल को ठहर कभी किसी शाम इस में क़ियाम कर कभी नींद की तू किताब में किसी रोज़ आ मिरे ख़्वाब में मिरी ख़ामुशी से कलाम कर कोई गुफ़्तुगू मिरे नाम कर बड़ी पाक है मिरी आशिक़ी न हवस की है इसे तिश्नगी न शराब-ए-हुस्न पिला मुझे मिरे नाम दीद का जाम कर ये लिबास-ए-हिज्र उतार कर तू लिबास-ए-वस्ल पहन कभी न ख़ुसूफ़ हो न अमास हो वो विसाल माह-ए-तमाम कर