यूँ नहीं है कि तिरी बात पे बिगड़े हुए हैं हम तो मजबूरी-ए-हालात पे बिगड़े हुए हैं कुछ मिरे प्यार न करने पे भी नाराज़ हैं वो कुछ ज़माने की ख़ुराफ़ात पे बिगड़े हुए हैं दिल का पक्का हूँ मगर मुझ से मोहब्बत न करो नक़्श जितने हैं मिरे हात पे बिगड़े हुए हैं नाम तक भी मिरा मा'लूम नहीं है जिन को क्या हुआ है कि मिरी ज़ात पे बिगड़े हुए हैं उन से पूछे कोई हर शय पे बिगड़ने का मज़ा दिन पे ग़ुस्सा हैं कभी रात पे बिगड़े हुए हैं चंद अफ़राद के बे-रंग नज़रिये 'काज़िम' मेरे रंगीन ख़यालात पे बिगड़े हुए हैं