साँस तक आता नहीं ये हाल है इश्क़ क्या है जान का जंजाल है फ़ित्ना-ए-महशर तुम्हारी चाल है हर क़दम पर दिल मिरा पामाल है हिज्र में किस तरह आएगा क़रार जब तुम्हारे सामने ये हाल है वो हमारे पास क्यों आने लगे नामा-बर की इस में कोई चाल है इश्क़ की जो कुछ सज़ा हो दीजिए हम को अपने जुर्म का इक़बाल है जिस में फँस कर कोई छूटा ही नहीं वो तुम्हारे गेसुओं का जाल है तू भी ज़ाहिद उन को देखे तो कहे क्या जवानी क्या अदा क्या चाल है मर्सिया है ये दिल-ए-मरहूम का या हमारा नामा-ए-आमाल है आज से दीवाना है 'हाजिर' कोई एक मुद्दत से परेशाँ-हाल है