सिवाए इश्क़-ए-बुताँ और मुझ को काम नहीं उन्ही का ज़िक्र है लब पर ख़ुदा का नाम नहीं तलाश-ए-यार में आवारा-वार फिरता हूँ मिसाल-ए-चर्ख़ मुझे एक दम क़ियाम नहीं रक़ीब के लिए भर भर के जाम आते हैं हमारे वास्ते पीने का इंतिज़ाम नहीं सुलूक ग़ैर से जो है वो हम से होता है तुम्हारी बज़्म में तफ़रीक़-ए-ख़ास-ओ-आम नहीं हसीन जितने हैं सब माल-ओ-ज़र के बंदे हैं यहाँ तो इश्क़ है लेकिन गिरह में दाम नहीं किसी से रोज़ तसव्वुर में बात होती है क़सम ख़ुदा की मुझे हाजत-ए-पयाम नहीं न कर विसाल में उन से गिला दिल-ए-नादाँ ख़ुशी का वक़्त है रोने का ये मक़ाम नहीं हर एक शे'र में हिज्राँ बुताँ का रोना है तिरे कलाम में 'हाजिर' ख़ुशी का नाम नहीं