सौ हसरतें तो आईं गया एक दिल गया मिलना था जो मुझे मिरी क़िस्मत का मिल गया उस ने लिया जो आइने में बोसा अपना आप अल्लह रे नाज़ुकी लब-ए-गुलफ़ाम छिल गया अल्लह रे जामा-ज़ेब तिरी जामा-ज़ेबियाँ पहना जो तू ने रंग वही रंग खिल गया जन्नत इसी का नाम अगर है तो बस सलाम महफ़िल में तेरी जो कोई आया ख़जिल गया मैं ने तो अपने वास्ते की थी दुआ-ए-वस्ल उल्टा असर हुआ वो रक़ीबों से मिल गया हस्ती में हैं अदम के मज़े आशिक़ों को 'दाग़' क़ालिब में जान आते ही पहलू से दिल गया