शब-ए-वस्ल और लब पे नफ़रत की बातें मोहब्बत से कीजे मोहब्बत की बातें लहू सीना-ए-संग से फूट निकले सुनाऊँ जो ऐ दोस्त ग़ुर्बत की बातें मिरा दिल मोहब्बत से अब भर चुका है न कीजे मेहरबाँ मोहब्बत की बातें न हमदम है कोई किसी का न मोनिस दिखावे की होती हैं चाहत की बातें न दुश्नाम दीजे ये अच्छा नहीं है शरीफ़ों से कीजे शराफ़त की बातें कुदूरत हर इक दिल में घर कर चुकी है हर इक कर रहा है ज़रूरत की बातें अभी तक मुझे याद हैं ऐ 'गिरामी' वो मख़मूर रातें वो ख़ल्वत की बातें